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ऐसे भी साधक:तीन पीढ़ियों से कर रहे रासलीला, वृंदावन से शुरुआत; अमेरिका में भी मंचन
चारधाम मंदिर परिसर में पांच दिवसीय विराट संत सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। इसमें देशभर से मंडलेश्वर, महामंडलेश्वर, आचार्यश्री का सान्निध्य मिल रहा है। ब्रह्मलीन बालयोगी श्री स्वामी अखंडानंदजी महाराज का पुण्यतिथि महोत्सव महामंडलेश्वर 1008 युगपुरुष श्री स्वामी परमानंदजी महाराज के मार्गदर्शन आयोजित किया जा रहा है।
इसमें ऐसे भी साधक आए हैं जो अपनी साधना से श्रीकृष्ण की लीलाओं का रस अमृत बरसा रहे हैं। प्रतिदिन शाम 7 बजे से यह आयोजन हो रहा है। श्रीरामश्याम लीला संस्थान रसाचार्य स्वामी लेखराज ओमप्रकाश शर्मा ऐसे ही संत हैं जिनके लिए श्रीकृष्ण और उनकी लीलाएं सबकुछ हैं। वे कहते हैं छह दशक पहले वृंदावन के एक छोटे से मंच से रासलीला शुरू की। तब उसे देखने, सुनने के लिए दर्शक-श्रोताओं को घर-घर जाकर आमंत्रण देना पड़ता था। अब देशभर के विभिन्न स्थानों के अलावा अमेरिका, थाइलैंड, कनाडा, नेपाल में भी मंचन कर चुके हैं।
24 कलाकारों का दल, प्रतिदिन वही उत्साह, करते हैं बारी का इंतजार
रासलीला मंचन के लिए 24 कलाकारों का दल है। शर्मा बताते हैं कि हर कलाकार का अपना किरदार है। उसके बावजूद प्रतिदिन वे अपनी बारी, अपने संवाद का इंतजार करते हैं। वे उसी तरह प्रस्तुति देने के लिए उत्साहित रहते हैं, जैसे यह उनकी पहली प्रस्तुति हो। एक बार मंच पर जाने के बाद उसी में घुल-मिल जाते हैं। वे किरदार को अपना हिस्सा समझने लगते हैं। पहली प्रस्तुति में 8 कलाकार थे, जो बढ़कर अब तीन गुना हो गए हैं।
तीन घंटे की प्रस्तुति के लिए छह घंटे की तैयारी
संतों के आशीर्वचन के लिए बनाए मंच से प्रतिदिन शाम 7 बजे से रासलीला का मंचन किया जा रहा है। शर्मा का कहना है कि तीन घंटे की प्रस्तुति के लिए प्रतिदिन करीब छह घंटे तैयारी करना पड़ती है।
श्रीमद्भावत कथा से प्रेरित है रासलीला
रासलीला वृंदावन की धरोहर है। शर्मा की मानें तो श्रीमद्भावत कथा के 10वें स्कंद में इसका उल्लेख मिलता है। तीन पीढ़ियों वे इसी काम में जुटे हैं। वे इसे किसी मंचन के रूप में नहीं देखते बल्कि उस युग में कैसा दृश्य रहा होगा, उसे महसूस करते हुए हर दृश्य का मंचन पूरी उमंग के साथ करते हैं।